मासिक धर्म—एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया—अक्सर चुप्पी, शर्म, और मिथकों से घिरी होती है। लेकिन यह विषय शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और सामाजिक भागीदारी से सीधा जुड़ा है। इस ब्लॉग में हम मासिक धर्म के सफर में प्रवेश से पहले, दौरान और सामाजिक पहलुओं के बारे में प्रमाण‑आधारित जानकारी साझा करेंगे।
1. मासिक धर्म: क्या है और क्यों ज़रूरी है?
मासिक धर्म वह प्रक्रिया है जिसमें गर्भाशय की परत टूटकर रक्त के रूप में बाहर निकलती है, जो लगभग हर 28 दिनों में एक बार घटित होती है। यह औसतन 21–35 दिनों के अंतराल में भी सामान्य माना जाता है। मासिक धर्म केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानवाधिकार और गरिमा का मसला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) इसे “एक स्वास्थ्य और मानवाधिकार का मामला” मानता है, न कि केवल स्वच्छता का मुद्दा ।
2. मासिक धर्म और अधिकार: क्यों परवाह करें?
WHO ने जहाँ इसे एक मानवीय अधिकार बताया, वहीं UN मानवाधिकार परिषद ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाया—यह अनुरोध करता है कि लोगों को इस दौरान जानकारी, उत्पाद, साफ‑सफाई की सुविधाएँ और सम्मान मिले । इसके अलावा, World Bank ने यह स्पष्ट किया है कि अच्छे मासिक धर्म प्रबंधन (MHM) से महिलाएं अपनी क्षमता तक पहुँच सकती हैं, शिक्षा जारी रख सकती हैं, और समाज में पूरी तरह भाग ले सकती हैं ।
3. भारत में मासिक स्वच्छता का वर्तमान परिदृश्य
प्रदत्त स्थिति (NFHS‑5 डेटा) एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में लगभग 76.15% युवा महिलाएँ (15–24 वर्ष) स्वच्छ मासिक उत्पादों (जैसे सैनिटरी पैड) का उपयोग करती हैं, लेकिन ग्रामीण (72.32%) और शहरी (89.37%) में अंतर स्पष्ट है । एक और विश्लेषण के अनुसार, सैनिटरी नैपकिन का उपयोग NFHS‑4 से NFHS‑5 के बीच 41.8% से बढ़कर 64.1% हो गया है । मगर अभी भी लगभग 25% महिलाएं (15–24 वर्ष) अस्वच्छ तरीकों (जैसे कपड़े, पुराने रैग) का इस्तेमाल करती हैं, जिससे लगभग 8% में यौनांग संक्रमण हो सकते हैं ।
सांस्कृतिक अवरोध
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मासिक धर्म को लेकर अंधविश्वास और सामाजिक रूढ़ियों का प्रभाव व्यापक है। जैसे कई जगह गर्भावस्था या पीरियड्स को अस्वच्छ माना जाता है, और लड़कियाँ प्राकृतिक जानकारी के अभाव और सामाजिक दबाव के चलते स्कूल भी छोड़ देती हैं ।
4. पर्यावरण-हितैषी विकल्प और जागरूकता
मेंस्ट्रुअल कप (Menstrual Cup)
यह नॉन‑टॉक्सिक, किफायती और इको‑फ्रेंडली विकल्प है। कई अध्ययनों में इसे सैनिटरी पैड्स की तुलना में सुरक्षित और पर्यावरण‑सक्षम बताया गया है । मानव शरीर में आरामदायक होने के साथ ही, इनका पर्यावरण पर प्रभाव डिस्पोज़ेबल उत्पादों की तुलना में 1.5% से भी कम होता है, और यह लगभग 10 साल तक उपयोग किया जा सकता है । हालांकि, जागरूकता की कमी और शुरुआती झिझक बड़ी बाधा हैं. एक शोध में पाया गया कि 68.6% लोगों को इसके बारे में जानकारी थी, लेकिन केवल 57.8% ने यह इसे किफायती और पर्यावरण-फ्रेंडली माना; जानकारी मिलने के बाद उनकी सोच में सुधार हुआ ।
क्लॉथ पैड (Eco Femme)
तमिलनाडु की Eco Femme महिलाओं द्वारा स्वदेशी और टिकाऊ कपड़ा पैड तैयार किए जाते हैं जो प्लास्टिक रहित और सर्टिफाइड (GOTS) होते हैं। ये 3–5 वर्ष या 75 वॉश तक इस्तेमाल हो सकते हैं। अब तक एक मिलियन से अधिक कपड़ा पैड वितरित किए जा चुके हैं, जिससे लाखों डिस्पोज़ेबल पैड्स कचरा नहीं बने ।
5.Grassroots आंदोलनों और समाज परिवर्तन
युवाओं की पहल से परिवर्तन. Shraddha Tiwari, उत्तर प्रदेश की एक 16 वर्षीय छात्रा, “Swachh Garima Vidyalaya” के तहत मासिक धर्म जागरूकता अभियान चला रही है। वह खुद कार्यशाला आयोजित करती हैं, मिथकों को बहस में बदलती हैं और मासिक सफाई की बात घर से स्कूल तक पहुंचा रही हैं ।
आंदोलन और नीति समर्थन
सोशल मूवमेंट जैसे “Happy To Bleed” ने धार्मिक और सामाजिक द्वेष को चुनौती दी है ।
Myna Mahila Foundation जैसे संगठन मासिक धर्म शिक्षा, किफायती उत्पादों और महिलाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा देते हैं; इन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सराहा गया है ।
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