आज झारखंड के दिग्गज नेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन का 4 अगस्त 2025 को निधन हो गया है ।
"गुरुजी" के नाम से पुकारे जाने वाले शिबू सोरेन सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की आवाज़ थे। उन्होंने बिहार से अलग झारखंड राज्य की स्थापना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 2000 में इसे साकार किया ।
जन्म: 11 जनवरी 1944, गांव नेमरा, रामगढ़ जिला (तब बिहार, अब झारखंड) ।
राजनीतिक सफर:
1972 में JMM की स्थापना, आदिवासी अधिकारों की लड़ाई की शिलाहार ।
लोकसभा से 8 बार चुने गए (दुमका से तकरीबन 1980–2019 तक) और राज्यसभा में भी 2 बार रहे ।
तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री – मार्च 2005, अगस्त 2008–जनवरी 2009, और दिसंबर 2009–मई 2010, पर लगातार लंबा साथ नहीं चल पाया ।केंद्र सरकार में कोयला मंत्री भी रहे तीन बार ।
स्वास्थ्य और निधन की स्थिति
शिबू सोरेन 19 जून 2025 से दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में इलाज़रत थे, मुख्य रूप से किडनी की बीमारी और ब्रेन स्ट्रोक के चलते। वे लगभग एक माह से वेंटिलेटर और जीवन समर्थन प्रणाली पर थे ।
अस्पताल की आधिकारिक घोषणा के अनुसार:
उनका निधन 4 अगस्त 2025 को सुबह 8:56 बजे IST में हुआ, जिसे अस्पताल ने शांतिपूर्वक बताया ।
अंतिम संस्कार और राजनीतिक शोक भाव **
उनका पार्थिव शरीर रांची लाया गया, जहां झारखंड विधानसभा और JMM कार्यालय से अंतिम दर्शन कराया गया, और फिर आदिवासी रीति–रिवाजों एवं राजकीय सम्मान से नेमरा गांव (रामगढ़) में अंतिम संस्कार हुआ ।
झारखंड सरकार ने तीन दिनों का शोक घोषित किया और विधानसभा स्थगित रखी गई ।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
उनके पुत्र और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने लिखा:> "Respected Dishom Guruji has left us all... I feel completely empty today." ։
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली अस्पताल में पहुंचकर श्रद्धांजलि दी, और कहा कि गुरुजी ने आदिवासी, गरीब व वंचित वर्गों को आगे बढ़ाने के लिए अपना जीवन समर्पित किया ।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि उनका जाना "सामाजिक न्याय के क्षेत्र में बड़ी क्षति" है ।
बिहार में नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव, जितन राम मांझी समेत अनेक नेताओं ने शोक व्यक्त किया और उन्हें आदिवासी आंदोलन का सूत्रधार बताया ।
विरासत और यादगार पहलू
शिबू सोरेन का संघर्ष हर बड़े मंच पर आदिवासी सम्मान, भूमि अधिकार और सामाजिक न्याय की आवाज रहा। JMM उनका दीर्घकालीन संगठन था, जिसकी बागडोर अब उनके पुत्रों—विशेषकर हेमंत सोरेन की पीढ़ी—के हाथों में है ।
उनकी राजनीतिक जीवनगाथा बताती है कि किस तरह एक युवक ने पारिवारिक दुख से प्रेरित होकर अपनी पूरी ज़िंदगी आदिवासी समुदाय के उत्थान में जलाई। “Dishom Guru” के रूप में वे आज भी झारखंड के आदिवासी समाज की प्रेरणा बने हुए हैं।
भावुक अंत: कुछ मन के शब्द
वो सिर्फ नेता नहीं थे, बल्कि आदिवासी आत्म‑सम्मान के प्रहरी थे। उन्होंने न सिर्फ आंदोलन चलाए, बल्कि संसद में उनकी
आवाज़ बुलंद की। आज उनका जाना एक युग का अंत है, लेकिन उनका आदर्श और आदिवासी अधिकारों की लड़ाई उनके पीछे आने वालों के लिए प्रेरणा बनेगी।
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